Skip to main content

Posts

How I Re-started my spiritual journey ?

एक रात मैंने एक सपना देखा: चाँदनी रात , शीतल वातावरण , एक छोटी सी नदी और मैं उसके पास औंधे मुंह लेटा हूँ। मेरा एक हाथ सिर के निचे तो दूसरा हाथ नदी में झूलते हुए ठन्डे पानी को स्पर्श कर रहा है। आँखे आसमान में चाँद को देखकर आनंदित हैं , इतना सुंदर द्रश्य जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। आज भी उस सपने को याद करता हूँ तो उस शीतलता की प्यास जग जाती है। लेकिन कभी ये सोच कर नहीं सोया की आज भी वही सपना आए। एक और अनुभव में मैंने कुछ दिन बिताये: मन जैसे संसार बनकर चारों तरफ फ़ैल गया है, मस्तिष्क विचारों से खाली हो गया है, शरीर मैं जैसे मेरे जानें बिना दिल भी नहीं धड़कता, बाहर जो कुछ भी दिखाई देता है वो बिलकुल नया और अनूठा हो गया है , भीतर एक धन्यवाद , एक आभार का भाव हिलौरे ले रहा है , जबकि ये भी नहीं पता की धन्यवाद किसका करना है , किसके पैरों में झुक जाऊं। आज भी जब उस वक्त का ख्याल आता है तो ऐसा लगता है जैसे बीत गया , अब वापिस नहीं आएगा। लेकिन हर रोज हर पल उस सामंजस्य को अपने भीतर उतार लेने की चाह से भरा रहता हूँ। मैंने सुना है की चाह छोड़ दो तो वो मिल जाएगा , प्रयास छोड़ दो तो वो मिल जायेगा , ले

Psychology of provocation by Upay Shunya : उकसावे का मनोविज्ञान

  तुम्हें उकसाने के लिए तुम्हारा अहंकार ही काफी है : क्या बात है ? आज बड़े चमक रहे हो ! बस थोड़ा सा इशारा और तुम्हारा अहंकार खड़ा हो जाता है , बड़ा हो जाता है।  आप कहोगे "किसी की तारीफ़ करने में क्या बुराई है ?"  मैं समझ सकता हूँ की आदमी शब्दों को पहले पकड़ता है, भाव को समझना थोड़ी दूर की बात है। फिर हर इंसान में एक "अव्यक्त विरोधी मानसिकता" होती है , जो शब्दों को पकड़कर विरोध करना शुरू कर देती है। यही विरोधी मानसिकता शब्दों से आगे बढ़ने नहीं देती।  ना किसी की प्रशंशा करने में बुराई है और ना ही सुनने में , लेकिन उस प्रशंसा (तारीफ़) से जगे अहंकार में बेहोशी है। क्या आपने ये नहीं सुना की "संत को न निंदा छूती है और न ही प्रशंसा।" लेकिन आप कोई संत तो नहीं, तो आपको आपकी निंदा से जितनी पीड़ा होती है, उतनी ही आपके लिए की गयी प्रशंसा भी घातक है।  उकसावा कितना घातक हो सकता है ? इस बात को तो कोई इंकार नहीं कर सकता कि सही दिशा में उकसाया गया व्यक्ति जीवन के कीचड़ में कमल खिला सकता है, और गलत दिशा में उकसाया गया व्यक्ति न केवल अपना बल्कि बाकियों का जीवन भी बदतर बना सकता है। तुम्ह

Psychology of Opposing Mindset - विरोधी मानसिकता का मनोविज्ञान

Psychology of Opposing Mindset   First of all let's see some examples of Opposing Mindset आइये पहले कुछ उदाहरण देखते हैं : क्या आपने कभी किसी स्टेडियम में जाकर भारत - पाकिस्तान का क्रिकेट मैच देखा है ? स्टेडियम में ना देखा हो तो टीवी पर तो देखा ही होगा !! जरुरी नहीं है की मैच भारत या पाकिस्तान में हो रहा हो, चाहे दुनिया की किसी भी पिच पर खेला गया हो , इन दो देशों के मैच को देखने के लिए सबसे ज्यादा दर्शक जाते हैं। जानते हो क्यों ? कोई कह सकता है की " अपने देश की टीम को स्पोर्ट करने के लिए। " लेकिन सच्चाई थोड़ी और गहरी है , असल में लोग जाते हैं विरोध के कारण। भारत - पकिस्तान के लोगों के बीच विरोध इतना गहरा है की वो अपने आप स्टेडियम के टिकट बिकवा देता है।  अब एक दूसरा उदाहरण देखते हैं: जर्मनी में हिटलर ने एक झूठ चलाया की यहूदी जर्मनी के दुश्मन हैं और यहूदियों को छोड़कर पूरा जर्मनी हिटलर के पीछे हो लिया। तुम क्या सोचते हो लाखों यहूदियों की मौत का कारण क्या रहा होगा ? एक अव्यक्त विरोध जो एक पंथ को मानने वाले के मन में दूसरे पंथ के प्रति होता है।  एक और उदाहरण देखते हैं : 2011 क

Last wish of every human - मनुष्य की अंतिम इच्छा।

what is last wish of every human ? अगर आप अंतर्मुखी स्वभाव के हैं तो हो सकता है कि आपके मन में ऐसे सवाल कभी न कभी उठे हों के: जो भी मैंने जाना है उसकी प्रमाणिकता क्या है ? संसार की वास्तविकता क्या है ? क्यों लोग अलग अलग अवधारणाओं के पीछे पागल हैं ? हो सकता है की किसी को ये सवाल पागलों वाले मालूम पड़ें , इसमें कुछ गलत भी नहीं है। ज्यादातर हम उन्हीं के प्रभाव में रहते हैं जो सतही जीवन जीते हैं। जैसे कोई राजनेता , अभिनेता , खिलाडी , कलाकार या फिर आपके परिवार वाले। ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है की किसी के माता पिता आध्यात्मिक हों , जो अपने बच्चों को जीवन को गहराई से देखने का नजरिया देते हों। हाँ धार्मिक माता पिता मिलना कोई जटिल बात नहीं है , यानी जो अपने धार्मिक कर्मकांडों का निर्वहन करते हों।  तो ज्यादातर बच्चे अपने जीवन में गहरे सवालों से चूक जाते हैं । इसका परिणाम ये होता है उनकी जिंदगी एक बेवजह की दौड़ बन जाती है , जिसमें दौड़ने वाला उस दौड़ का आनंद भी नहीं ले पाता। और फिर मरते समय कुछ हाथ में भी नहीं आता , ना ही इस दौड़ का कोई मैडल और ना ही दौड़ने की संतुष्टि । मरते मरते भी आदमी इसी उहा

My encounter with Depression Symptoms - मानसिक अवसाद

सामान्य अवलोकन  वैसे तो इंसान बचपन से ही मानसिक अवसादों का शिकार बन जाता है। फिर भी लगभग 30 साल की आयु के बाद ये मानसिक अवसाद किसी ना किसी गंभीर मांनसिक बिमारी का रूप ले लेते हैं। हताशा एक ऐसी ही गंभीर मानसिक बीमारी है , जिसका कोई एलोपैथिक इलाज नहीं है। हताशा के कारण कोई इंसान आत्महत्या को भी राजी हो जाता है। यानी अब हताशा इतनी गहरी हो गई हो गई है की मृत्यु के अतिरिक्त और कोई आशा पूर्ण होती नजर ही नहीं आ रही। और फिर ज्यादातर हताश लोग अपनी आखिरी संभव आशा को पूर्ण करने के लिए कदम उठा लेते हैं , मरने का।  अब ये बात विचारणीय है की आशाओं में ऐसी क्या खास बात है , जो हर इन्सान इन आशाओं के पीछे पूरा जीवन खपा देता है। बदले में उसे क्या मिलता है ? केवल मानसिक संतुष्टि , या आशा पूरी न होने पर अवसाद।   Un talked Psychology: इंसान अपनी इच्छा पूर्ति के लिए  इतनी भागदौड़ क्यों करता है ?  अब आते हैं मानसिक बीमारियों पर, इस विष्य पर अपनी बात रखने से पूर्व एक आपबीती बताता हूँ : कई साल पहले एक समय ऐसा था जब मेरा मन अवसादों से भरा पड़ा था , कारण भी बड़े अजीब थे। एक तो मुझे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था की जीवन के

UnTalked #Psychology "Aatm Sankalan Kya hai" ? आत्म संकलन क्या है ?

Aatm Sankaln -  आत्म संकलन को समझने की आधारशिला  वैसे अगर इन शब्दों का अर्थ निकालें तो आत्म यानी स्वयं और संकलन यानी इकठ्ठा करना। तो आत्म संकलन का अर्थ हुआ स्वयं को इकठ्ठा करना। शायद कल ही मैंने सद्गुरु जी का एक वीडियो देखा था जिसमें एक व्यक्ति ने पूछा कि " ऐसा क्यों होता है की जीवन में कुछ चीजें बार बार खुद को दोहराती चली जाती हैं। " जैसे क्यों एक इंसान बार बार दिल टूटने के बाद भी प्यार की तलाश में रहता है ? या क्यों साफ साफ़ मौत दिखने पर भी धन के प्रति मोह जारी रहता है ? या फिर क्यों बार बार क्रोध करके पछताने पर भी क्रोध आता रहता है ? कई बार तो एक जैसी परिस्तिथि भी कई बार आँखों के सामने घटित हो जाती है , शायद लोग उसे "डेजा वू" कहते हैं। लेकिन मुख्य्र सवाल यही था की जीवन में ऐसा क्यों है , और इस चक्र से बाहर कैसे निकलें ? शायद आपके जीवन में भी कम से कम इस प्रश्न पूछने वाले जितनी गहराई होगी ? हमारा जीवन लगातार छोटे बड़े चक्रों में घूम रहा है , लेकिन शायद ही हम कभी इस पर इतना ध्यान देते हों ! जैसे सुबह उठने से लेकर फिर सोकर उठने का चक्र , खाना खाने से लेकर फिर खाना खान

Un talked Psychology: इंसान अपनी इच्छा पूर्ति के लिए इतनी भागदौड़ क्यों करता है ?

Just 4 Minute Read यूँ तो गूगल बाबा के पास अथाह विचारों तक पहुँचने का रास्ता है, एक सामान्य व्यक्ति का पूरा जीवन निकल जाए तो भी सभी सूचनाओं को पढ़ पाना असंभव है।  फिर भी जब इस सवाल को गूग्गल (😀) बाबा पर खोजा तो केवल इच्छाओं से सबंधित सूचनाएं मिली। Google सर्च से मिले पहले तीन उत्तर निचे दिए गए चित्र के माध्यम से दिखा रहा हूँ।   एक मानव के रूप मैं मैंने बहुत कुछ किया है , जैसे : अभी भी कम से कम मैं लिख रहा हूँ और आप पढ़ रहे हैं , हम कुछ ना कुछ करते रहते हैं। और ज्यादातर कार्यों के पीछे कोई ना कोई इच्छा काम कर रही होती है।  शायद, मेरी इच्छा है की अपने सवाल का सही और स्टीक जवाब ढूंढकर लिखूं। शायद आपकी इच्छा है की कुछ नया और रोमांचक पढ़ने को मिले। अब न तो कोई मेरी इच्छापूर्ति के लिए उत्तरदायी है और ना ही आपकी। यानी हम दोनों ही जानते हैं की इच्छा पूर्ण हो भी सकती है और नहीं भी।  इसी कर्म को आगे बढ़ते देख मेरे मन में सवाल उठा की "इंसान अपनी इच्छा पूर्ति के लिए  इतनी भागदौड़ क्यों करता है", शायद आपके मन में ये सवाल कभी उठा भी नहीं होगा। ये सवाल तो बहुतों ने पूछा होगा की "इच्छाएं